चरित्र निमार्ण की निर्माणशाला सत्संग है. सत्संग से मनुष्य को सच्चा ज्ञान मिलता है. ज्ञान दो प्रकार का होता है-१- शिक्षा २-विद्या
१- शिक्षा--शिक्षा वह है जो विद्यालयों व महाविद्यालयों में पढ़ाई जाती है जिसे पढ़कर जीविकोपार्जन एवं लोकव्यवहार में निपुणता प्राप्त करने कर के मनुष्य आगे बढ़ता है. शिक्षा सांसारिक जानकारी देती है
.
२-विद्या- विद्या वह ज्ञान है जिसको प्राप्त करके मनुष्य अपनी मान्यताओं , भावनाओं , आकान्क्षाओं एवं आदर्शों का निर्माण कर सकता है. उसी ज्ञान को विद्या कहा जाता है. अतः कहा गया है- नास्ति विद्यासं चक्षुः. इसे प्राप्त करने का माध्यम स्कूल नहीं बल्कि सत्संग है. संसार में इस ज्ञान से बढ़कर और कोई श्रेष्ठ पदार्थ नहीं है. विद्या अन्तःकरन तक पहुँचती है और उसके द्वारा व्यक्ति का निर्माण होता है. विद्या को ही ज्ञान कहते हैं. ज्ञान का आधार अध्यात्म है. ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही होना है . उस विद्या के आधार पर वह सच्चे अर्थों में मनुष्य बनता है. विद्या से मनुष्य में शालीनता, शिष्टता, सज्जनता एवं नागरिकता शाश्वत एवं सतत आँचल में बसती है. यही विद्या शालीनता की दायिनी है. शीलं परम भूषणम. चरित्र ही जीवन है . यही जीवन की सोपान है. जय लोकमंगल.
भगवान सिंह हंस
९०१३४५६९४९
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