नर्म हथेली
चलने को तो चला रात भर
चाँद हमारे संग
हुई भोर तो हमने पाया
उड़ा चाँद का रंग |
सपनों ने भी खूब निभाई
यारी बहुत पुरानी
कई बार फिर से दोहराई
बीती प्रेम कहानी
लगा स्वप्न में धरी किसी ने
मांथे नर्म हथेली
छूट गई सपनों की दुनिया
नींद हो गई भंग |
पूरब का आकाश सज रहा
पश्चिम करे मलाल
जलचर वनचर दरखत परवत
सबने मला गुलाल
हर प्राणी उठ खडा हो गया
छोड़ रात के रंग
सूरज सजकर चला काम पर
ले अश्वों को संग |
भरी दोपहरी हमने काटी
किसी पेड़ की छाँव
रहे देखते हम पगडण्डी
जाती अपने गाँव
ढली दोपहरी कदम बढाए
चले गाँव की ओर
धूल उड़ातीं गैया लौटीं
चढ़ा सांझ का रंग |
धीरे से दिनमान छिप गया
चूम धरा का भाल
हम भी अपने घर जा पहुंचे
आँगन हुआ निहाल
देखे पाँव रचे महावर से
स्वप्न हुआ साकार
फिर से चाँद उगा आँगन में
मन में लिए उमंग |
बी एल गौड़ .
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