इंटर नेशनल मदर्स डे पर मां को तलाशते हुए मेरे कुछ दोहे
सूती धोती सीय के, अम्मा गई बुढाय ।
घर के ख़र्चे नहीं घटे, बढ़ी न घर की आय ।।
माँ ममता की मूर्ति , है कुरान सी पाक ।
बेटों में पर युद्ध है, कटती इससे नाक।।
अम्मा दिन भर यूं चले , ज्यों कुम्हार का चाक ।
पर जीवन की साँझ ने , रखा उस को ताक।।
बूढ़ी माँ को जब मिला ,बच्चों से आदेश।
अपना घर लंका लगा , घर वाले लंकेश ।।
बच्चों का बरताव है, या जहान से जंग ।
मां को पर ऐसा लगे, जैसे कटे पतंग ।।
हिस्सा सब को चाहिए ,नहीं किसी को धीर।
मां से मिलने में डरे ,मेरा अपना बीर।।
किस युग की यह रीति है ,किस युग के हैं लाल।
मां को गौमाता समझ ,घर से रहे निकाल ।।
पढ़ी लिखी संतान ने ऐसा किया कमाल।
बूढी मां का कर दिया , बद से बतर हाल।।
-राजमणि
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