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Thursday, May 12, 2011

गज़ल





प्रिय नीरव जी,
आज अनेक दिन बाद ब्लॉग देखा ब्लॉग पर बढ़ते सदस्यों को देख कर गौरव-पूर्ण हर्ष की अनुभूति हुई विशेष रूप से कर्नल विपिन चतुर्वेदी की उपस्थिति अत्यंत सुखद लगी ब्लॉग पर, नये व पुराने सभी सदस्यों की रचनाएं उत्कृष्ट और मर्म स्पर्शी हैं आपकी गज़ल उम्दा है विशेषतः उसे परिपुष्ट करता हुआ आप दोनों का छाया चित्र भी प्रभावशाली है बधाई! अपनी ही पंजाबी गज़ल के हिंदी अनुवाद से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हूँ

गज़ल
कुछ नाग, महक के आंगन में कुंडलियां मार जमे बैठे,
फनधर, विषधर, इच्छाधारी, मनचाहे साज सजा बैठे

ख्वाहिश तो मेरी भी थी ये अम्बर के सब तारे तोडूं,
अधमरे हौसले पर मेरे बस हाथ पे हाथ बड़े बैठे

कुछ घर की है कुछ बाहर की, कुछ खुद बीती कुछ जग बीती,
गज़लो के शेरों में इनको हम, गठरी बांध लिए बैठे

दुनिया मतलब की हाट, यहां पर फन का भी होता सौदा,
तू अपना माल दिखा प्यारे, सौदागर घाघ बड़े बैठे

तेरे हाथों से छूटे, तेरी चाहों के नटखट पंछी,
मेरे दिल की नाज़ुक टहनी पर डेरा ड़ाल अड़े बैठे!

तू जनता की फरियाद मधू , न सुनेगा कोई भी तेरी,
ये अपना राग अलापेंगे, दरबारी यार जुड़े बैठे|

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