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Monday, May 23, 2011

मिल जाए अगर तुझसे मिलने का इक बहाना

मिल जाए अगर तुझसे मिलने का इक बहाना
बनती है तो बन जाए, मेरी ज़िन्दगी फ़साना।

हमने तुम्हारे दर तक, फेरा लगा दिया है
भूलें न आप भी अब, मेरी गली में आना।

दिखला के इक झलक सी, परदे में छुप गए हो
अब शाम ढल रही है, छोड़ो भी यूँ सताना।

ग़ज़लों की इस कहन में मंज़र-कशी हमारी
तुमने तो देख ली है, देखेगा कल ज़माना।

अब रात हो रही है, सब बेक़रार होंगे
छोड़ो भी ये बहाना, छोड़ो भी ये बहाना।

फिर बिजलियाँ गिरेंगी, दिल पर हमारे देखो
ऐसे न मुस्कराना, ऐसे न मुस्कराना।

मक़बूल कह रहे हैं, पहले तो जाम भरिये
फिर मूड आ गया तो, छेड़ेंगे हम तराना।
मृगेन्द्र मक़बूल

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