पुनर्जन्म की राह मृत्यु के अन्धकार से पूर है,
कौन जानता स्वर्ग गगन के ऊपर कितनी दूर है;
मुझे नहीं स्वीकार प्यार कल्पना जगत मैं कल्प तक
,इस जीवन मैं दो क्षण का सौहार्द मुझे मंज़ूर है ।
मृत्यु के प्रश्न पर मेरी यह प्रतिक्रया है।
मेडिकल लाइन के अनुसार मृत्यु दो प्रकार से होती है। एक मृत्यु मैं ह्रदय और मस्तिष्क दोनों काम करना बंद कर देते हैं यही वास्तविक मृत्यु होती है। दूसरी स्थिति मैं ह्रदय काम करता रहता है मस्तिष्क निष्क्रिय होजाता है। कहते उसे भी मस्तिष्क मृत्यु (ब्रेन के ) ही हैं, किन्तु उसे मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं दे सकते ,।
शांतिकुंज के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा की पुस्तक है ,*मरने के बाद हमारा क्या होता है?* उनने इस विषय की अच्छी विवेचना की है । गरुड़ पुराण मैं तो जीव की पूरी तेरह दिन की यात्रा का वर्णन है। लेकिन ये सारी मान्यताएं जीव के भविष्य को लेकर हैं । हम और आप अपने शरीर के कारण हम और आप हैं , वह तो यहीं रह गया। उसकी नियति तो केवल खाक है चाहे शमशान की हो चाहे लोदी विद्युत् गृह की हो चाहे किसी कब्रिस्तान की हो, और उसके लिए आपको हम डाक्टरों से प्रमाणपत्र अवश्य लेना पडेगा.
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