Search This Blog

Monday, May 23, 2011

ज्ञान गीत

तुमने मांगा संगीत, कोष मथ ,शब्दगीत भर भर लाया
तुमने जब छेड़े गीत ,वायु मैं बना,स्वरों को दुलराया
कुछ ठंडी साँसें बन निकला,तुम झुलसे जब विरहानल में
कुछ तो शीतलता पहुंचाई,निश्वास और आंसू जल ने
भेजने लगे सन्देश, आर्द्र हो, मेघदूत बन कर आया
यदिआवश्यकता बहुत हुई, तो मनुज रूप धरकर आया
जब तुम जीवन से हार गए, विश्वास जगा जब ईश्वर पर,
तब भजन बने घर घर गूंजे मेरे कंठों से निकले स्वर ,
मानव,पति,प्रेमी बना दिया गीतों ने परमेश्वर तक को
यह युगों युगों तक गूंजेगा, जो गीतसुनाऊंगा तुमको
(क्रमशः)

No comments: