भाई भगवान सिंह हंस ने प० सुरेश नीरव से प्रश्न किया है कि मृत्यु क्या है।
इस पर मुझे एक शेर याद आ रहा है कि,
ज़िन्दगी क्या है, अनासिर में तरतीबे- ज़हूर
और मौत है, इन अरजां का परीशां होना।
मतलब कि दुनिया में चीज़ों का सिलसिलेवार रहना ही ज़िन्दगी है, और
इस सिलसिले का परीशां होना या टूटना ही मौत है।
आज कोई नई ग़ज़ल तो नहीं कह पाया, लिहाज़ा नरेश कुमार शाद
की एक पसंदीदा ग़ज़ल पेश है।
ये इंतज़ार ग़लत है कि शाम हो जाए
जो हो सके तो अभी दौरे- जाम हो जाए।
ख़ुदा न ख्वास्ता पीने लगे जो वाइज़ भी
हमारे वास्ते पीना हराम हो जाए।
मुझ जैसे रिंद को भी तूने हश्र में यारब
बुला लिया है तो कुछ इंतज़ाम हो जाए।
वो सहने- बाग़ में आए हैं मयकशी के लिए
ख़ुदा करे कि हरइक फूल जाम हो जाए।
मुझे पसंद नहीं इस पे गाम- ज़न होना
वो रहगुज़र जो गुज़रगाहे- आम हो जाए।
मृगेन्द्र मक़बूल
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