ज्ञात से अज्ञात की अनंतयात्रा म्रत्यु है. या यों समझें - आत्मा का फिर परमात्मा के विराट में समाहित होना म्रत्यु है. आपने बड़ी गहराई से विश्लेषण एवं मीमांसा करके और बड़े ही सटीक द्रष्टव्य दे देकर दार्शनिकभाव से म्रत्यु को परिभाषित किया है. बार-बार मेरे मन में प्रश्न उठता था कि म्रत्यु क्या है. मेरी जिज्ञासा थी कि शब्दऋषि एवं शब्दपंडित श्री नीरवजी से म्रत्यु के बारे में जानूं. आपने मुझे म्रत्यु के बारे में बड़ी बारीकी से तत्वतः संज्ञान दिया है ,उसके लिए आपका अभिनन्दन करता हूँ, शत-शत आपकी चरणवन्दना करता हूँ , धन्य है आपकी शब्दमीमांसा. मेरे पालागन.
आदरणीय गुरुदेव मेरा अगला प्रश्न है -
जीवन क्या है? यह मूर्त है या अमूर्त ? समझाकर बतलाइए. आपसे यह जानने की मेरी बड़ी जिज्ञासा है.
प्रष्टा-
भगवान सिंह हंस
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