Search This Blog

Sunday, May 15, 2011

साहित्यानंद भगवदानंद

१-साहित्यानंद भगवदानंद है.

२-साहित्य चिंतन-मनन का विषय है.

३-साहित्य एक साधना है .

४-साहित्य विसय-विकारों से दूर रखने का साधन है.

५-साहित्य  की रसानन्दानुभूति अन्तःकरण से होती है.

६-साहित्य में ध्यान की संलग्नता व अन्तःकरण का एकीकरण होता  है.

७-साहित्य साधक को अन्य साधना  करने की आवश्यकता नहीं होती है.

८-क्योंकि साहित्य स्वयं में एक साधना है.

९-एक साहित्यसाधना शतगंगास्नान से भी बढ़कर है. 

१०-क्योंकि साहित्य शब्द से  बना  है और शब्द से परे कुछ  नहीं है.

११- और शब्दानंद से परे कुछ नहीं है तथा वही शब्दानंद परमानंद है.

१२-अतः साहित्यसाधना अपरिहार्य है.

१३- और वही पाप या भ्रष्टाचार की विनाशक है.
१4-साहित्यसाधना ही मोक्ष दायित्री है.

15- अन्य साधना  तो भौतिकानंद हैं जो क्षणिक होती  हैं.  


      बृहद भरत चरित्र महाकाव्य 

                 प्रणेता

   भगवान सिंह हंस

    ९०१३४५६०४९  


.  


No comments: