१-साहित्यानंद भगवदानंद है.
२-साहित्य चिंतन-मनन का विषय है.
३-साहित्य एक साधना है .
४-साहित्य विसय-विकारों से दूर रखने का साधन है.
५-साहित्य की रसानन्दानुभूति अन्तःकरण से होती है.
६-साहित्य में ध्यान की संलग्नता व अन्तःकरण का एकीकरण होता है.
७-साहित्य साधक को अन्य साधना करने की आवश्यकता नहीं होती है.
८-क्योंकि साहित्य स्वयं में एक साधना है.
९-एक साहित्यसाधना शतगंगास्नान से भी बढ़कर है.
१०-क्योंकि साहित्य शब्द से बना है और शब्द से परे कुछ नहीं है.
११- और शब्दानंद से परे कुछ नहीं है तथा वही शब्दानंद परमानंद है.
१२-अतः साहित्यसाधना अपरिहार्य है.
१३- और वही पाप या भ्रष्टाचार की विनाशक है.
१4-साहित्यसाधना ही मोक्ष दायित्री है.
15- अन्य साधना तो भौतिकानंद हैं जो क्षणिक होती हैं.
बृहद भरत चरित्र महाकाव्य
प्रणेता
भगवान सिंह हंस
९०१३४५६०४९
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