आज दिनांक २२ मई २०११ को मैं तीन दिन की यात्राप्रवास पर कठुआ को जा रहा हूँ. वहाँ की रमणीक नागमालाओं की आंचलिक दिव्यता हरितमा से लसित धरनि से गगन तक पसरती, अपनी अनेकानेक अनुपम आभा की सुगंध को बिखेरती हुई अपनी सत्य, सहज और सरस मुद्रा में मुस्कराती है का दर्शन करूंगा. यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे वहाँ की सत्य में मनुष्यता को झकझोरती अलौकिक प्राकृतिक छटा के नमन हेतु माँ भगवती ने मुझे अवसर प्रदान किया. मेरे नमन.
No comments:
Post a Comment