रहता आया अंतस्तल में मैं ही भावुक का भाव बना,
औ काव्य रूप धर फूट पड़ा जब क्रोंच बधिक का लक्ष्य बना.
मेरा विकास संभव न हुआ होता यदि साथ न होते तुम
मैं भूलुंठित होता अबतक, आधार न यदि मिलजाते तुम।
तुमने दी मुझको कांति कि जिससे मैं कंचन सा दमक उठा
मैंने तुमको वह भाषा दी जिस से जड़ जंगम गमक उठा।
जब भी मैंने की भूल ,तभी तुमने आ आकर समझाया,
जब कभी तुम्हें पाया तन्द्रिल, मैंने जीवन का पद गाया।
पाया यदि आवश्यक तो नवरस दान किया जीवनतरु को
यह युगों युगों तक गूंजेगा, जो गीत सुनाऊंगा तुमको।
( क्रमशः )
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