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Wednesday, June 8, 2011

 अंधे हालात ................

फूल हर सिहर उठे ,देख  दंश खार के
तार तार हो गए, शिल्प- शिल्पकार के
हाय भेंट चढ़ गए, आग के, बयार के
हो गए धुंवां- धुंवां, सप्त रंग प्यार के

घृणा कहे कटार को, घोंप दो, रे घोंप दो
वेदना कहे इसे, रोक दो, रे रोक दो
जीतती गयी घृणा
 हार संवेदना
श्रांत- शांत हो गयी, चीख के, पुकार के
हो गए धुंवां- धुंवां, सप्त रंग प्यार के

बुझ गया कहीं  दिया, आंधियां कहीं चली
मौत नाचती कहीं, दुश्मनी कहीं पली
अंग अंग कट गए
 सरहदों में बट गए
मजहबी कटार के ,सिर्फ एक वार से
हो गए धुंवां धुंवां, सप्त रंग प्यार के

राग अनुराग से, सब विराग हो गए
चहचहाते खग सभी, चील काग हो गए
नौच नौच खा रहे
 घोंसले जला रहे
मेल के, व्यवहार के, रिश्ते थे उधार के
 हो गए धुंवां धुंवां, सप्त रंग प्यार के

द्रोपदी के चीर का, हाय फिर हुआ हरण
ढूंढता कलाईयाँ, फ़िर रहा था आवरण
आस्था को छल गए
 चूड़ियों में ढल गए
लाज के हथियार थे, राखियों के तार थे
हो गए धुंवां धुंवां सप्त रंग प्यार के

पालने की सिसकियों को विराम दे कोई
नन्ही नन्ही अंगुलियाँ, बढ के थाम ले कोई
वात्सल्य खो गए
भाव शून्य हो गए
शब्द वो दुलार के, हाथ पुचकार के
 हो गए धुंवां- धुंवां, सप्त रंग प्यार के

पांव लडखडा गए, ताल से भटक गए 
सुर सुरीले टूट कर कंठ में अटक गए 
टूट कर बिखर गए
 कागजों में मर गए 
तार थे सितार के, गीत  गीतकार के
हो गए धुंवां धुंवां, सप्त रंग प्यार के


-घनश्याम वशिष्ठ  

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