पहले कही थी हमने भी उसूल की ग़ज़ल
अब हो गई है ज़िन्दगी फज़ूल की ग़ज़ल।
ये आँधियों का दौर है, तूफ़ान का मौसम
चारों तरफ दिखे है हमें धूल की ग़ज़ल।
मंज़र तो देखिये ज़रा, कितना हसीन है
डाली पे मुस्कराते हुए, फूल की ग़ज़ल।
उस ज़ुल्फ के गुलाब से, थोड़ा सा संभालिये
उस में भी छुपी होगी कहीं शूल की ग़ज़ल।
सुनते ही चार शेर, उतर जाएगा नशा
सुनियेगा ज़रा गॉर से मक़बूल की ग़ज़ल।
मृगेन्द्र मक़बूल
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