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Saturday, June 11, 2011

कल शाम नीरवजी के साथ बैठा था।स्वाभाविक था कि देश दुनिया लोकमंगल ,व्यवस्था,राजनीति सभी को जी भरकर कोसा।सिवाय कोसने के कलम के मज़दूर कर भी क्या सकते हैं।


कल शाम नीरवजी के साथ बैठा था।स्वाभाविक था कि देश दुनिया लोकमंगल ,व्यवस्था,राजनीति सभी को जी भरकर कोसा।सिवाय कोसने के कलम के मज़दूर कर भी क्या सकते हैं।रात मे लगभग ११ बजे लौटने के बाद भी नीद नही आयी बाबज़ूद इसके कि सस्ती सी शराब के पांच- या छः पैग उतार आया था।नीद ना आने की वज़ह कोई क्रांतिकारी योजना असफल हो जाना नही था अपितु असहायता-निराशा का शायद वही भाव घर कर जाना था जिसने बिस्मिल जी से लिखवाया कि अभी देश क्रांति के लिए तैयार नहीं हमें गांधीजी के रास्ते पर चलकर पहले देशवाशियों को तैयार करना होगा।देश ने शायद बिस्मिल जी को बुला दिया पर उनकेइस संदेश को गांठ बांध लिया।
पर आज २०११ मे अब देश क्या करे जब गांधी के रास्ते पर चलने वालों को रात मे दौडा-दौडा कर मारा जाने लगा है।
इस घटना से पुर्व अपने मित्रों द्वारा राजनीति और व्यवस्था कोकोसे जाने पर मैं बडे फख्र से कहता था कुछ भी हो हमारे यहां अभिव्यक्ति की आज़ादी है ,लोकतंत्र है।मैं किसी पत्रिका मे ना छपने वाला स्वयंभु लेखक,सरकारी स्कूल काअदना सा अध्यापक बडे से बडे माफिया,पत्रकार नेता को सरेआम उसकी औकात बताने मे नहीं हिचकता था।
पर आज बिस्मिल जी के १२४वें जन्मदिन के मौके पर मेरा वह हौसला ,विश्वास चुकने लगा है।
सुबह ५बजे ही नींद खुल गयी पहला काम अपने मित्रों (जिनमे जितिन प्रसाद से लेकर अशोक जातव और राजशेखर व्यास से लेकर अलका पाठक तक) को बिस्मिल जी के जन्मदिन की एस एम एस द्वारा बधाई दी।
कुछ घंटों बाद लोकमंगल और फेसबुक पर भी लिखा।अब जबकि शाम के छः बजे हैं ।ब्लाग के माध्यम से नीरवजी
एवं विपिन चतुर्वेदी जी तथा मैसेज द्वारा केवल श्रीकांत सिंह ही मेरी भावना मे शामिल होते दिखे।
शायद वे सब कहीं ज़्यादा महत्वपुर्ण अभियानों में संलग्न हैं।क्योंकि मेरे जैसे मामूलि व्यक्ति को तो अब यह पूंछते हुए भी डर लगता है कि स्व) राजीव गांधी को लल्लू प्रधानमंत्री कहने वाले अशोक चक्रधर हिंदी अकादमी की गरिमा बढाने के बाद भारतीय सांस्क्रतिक संबंध परिषद को कौन सी अमूल्य सलाहें दे रहे हैं,मैं तो अब यह भी नही जानना चाहता कि जनार्दन द्विवेदी के उन सविता असीम से क्या रिश्ते हैं जो छितिज का मतलब अंतरिछ बताती हैं और हिंदी अकादमी की सलाहकार हो जाती हैं।मैं तो यह भी अब नहीं जानना चाहता कि दूरदर्शन के मेरी बात कार्यक्रम जिसके लिए अमरनाथ अमर को दूरदर्शन का इस वर्ष का पुरस्कार मिला उसके प्रस्तोता तारिक आलम खां ने दिल्ली नगर निगम जहां कि वह अध्यापक हैं से अनापत्ति प्रमाण लिया भी है या नहीं।
सरकार की ताकत से भयभीत मै अरविंद पथिक पं० रामप्रासद बिस्मिल को बधाई देता हूम कि उन्होने समय रहते
फांसी पर लटक जाने का अत्यंत समझदारी भरा फैसला किया वरना कोई भी मृणाल पांडे मार्का पत्रकार उन्हे आर० एस०एस० का कार्यकर्ता घोषित कर देता और फिर तो मैं भीपूरी इमानदारी के साथ कहता हूं कि आप का नाम तक ना लेता।

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