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Monday, July 4, 2011

जयलोकमंगल गुलजस्ता

जिस घड़ी नन्हे दिए की शोखियाँ लहरायेंगी
बस्तियों में कुछ हठीली आंधियां लहरायेंगी
ये खबर ज्यों ही मिली मेरा नशेमन बन गया
इस चमन में हर तरफ ही बिजलियाँ लहरायेंगी
धूल में मिल जायेंगे ये जुल्म के सरताज सब
जब हवा में बेबसों की मुठ्ठियाँ लहरायेंगी।
पंकज अंगार
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आज सुबह ५ बजे पत्नी ने मुझे जगाया ..........
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२० किलो गेहूं धुलवाया , २० किलो चावल छनवाया ,
घुन निकाल कर साफ़ करा कर , मुझसे ही ड्रम में रखवाया ,
गेहूं धोया , उसे उठाकर ,सर पर रख छत पर पहुँचाया ,
धनिया बीना , गरम मशाला कूटकाट कर उसे पिसाया ,
३ बजे पंडित जी आये , उनको सारी विपति बताया ,
४ बजे फिर खाना खाया , ६ बजते गेहूं उतारकर उसको ,
चक्की तक पहुँचाया ,
क्या बतलाओं तुम्हे दोस्तों ,
जाने किस उल्लू के पट्ठे ने ऐसा इतवार बनाया ......।
अशोक झंझटी
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विश्वास की ज़िन्दगी से

एक पवित्र एहसास
जो रहता दिल के पास
पनपता उम्मीद से
ह्रदय की संगीत से
बन जाता जिंदगी का आकाश
जब मन के क्षितिज में पनपता विश्वास
विश्वासों की शाखाओं पे
कभी ख़ुशी तो कभी गम के
कभी वफाई तो कभी बेवफाई
कभी मिलन तो कभी जुदाई
यादों की पुरवाई में
हसीन फूल खिलते हैं
जब बड़ी दिल्लगी से
हम मिलते हैं ज़िन्दगी से
फिर क्युं घबरा जातें है
आँखों की नमी से
कुछ ज्यादा तो नहीं माँगा था
अपनी कलम की जिंदगी से
सुना था विश्वास मिलता है
प्यार से दिल्लगी से
अब परिभाषा ही बदल गई है
विश्वास की ज़िन्दगी से
अभिलाषा है मन प्यासा है
विश्वासों के फूल खिलेंगे
योगी मन एहसासों की बंदगी से
अरे कुछ तो हांसिल होगा
विश्वासों के घर जिंदगी से !
भ्रस्टाचार की गंदगी से !
अरविंद योगी

यह कविता क्यों ? विश्वास जिंदगी है, विश्वास मौत है, विश्वास ही प्रारब्ध है और विश्वास ही अन्त है बेचारी जिंदगी तो संत है !
अरविन्द योगी *विश्वास तोड़ने वालों को सहृदय समर्पित जय भारत।


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