Search This Blog

Wednesday, August 3, 2011

मेरे अन्दर झांको ,,,,,,,,,

कादम्बिनी के प्रवेश स्तम्भ में प्रकाशित   -
मेरी कविताएं...(.तीन  )

मेरे अन्दर झांको ,,,,,,,,,

मैं तारा
विस्तृत गगन में 
लोगों की नज़रों में 
चमक रहा हूँ 
मेरे अन्दर कितनी आग है 
गहन ज्वलनशीलता 
कदाचित कोई नहीं जानता 
सब देखतें है 
मेरी चमक
मैं चमक रहा हूँ 
पर उसके साथ तिमिर है 
विषादयुक्त 
कोई नहीं देखता 
मेरे अन्दर झांको 
शायद तुम्हें भी दिखाई दे 
एक विकृत आकृति 
जो मैंने तराशी है 
पाली है 
जानकार लोग 
उसे कुंठा कहते हैं

घनश्याम वशिष्ठ


No comments: