कादम्बिनी के प्रवेश स्तम्भ में प्रकाशित
मेरी चार कविताएँ .....(दो )
सफलता .....
वह उसके लिए
सुबह से शाम तक
निरंतर /अयति
पिसता रहा
जलता रहा
गलता रहा
अपने इस श्रम का
जिसमें वह ,
सागर भर पसीना बहाता रहा
अंशुमाली की गर्म सुइयों से
बिंधता रहा
एक पल रुकने के भय से -
स्थिल पड़ते हाथों में
बलात-
खून का संचार करता रहा
निरंतर सक्रियता के लिए
फल की चाह
वंचितता की व्यथा
दीवार तोड़ता रहा
परिणति ..
सफलता नून रोटी की
घनश्याम वशिष्ठ
No comments:
Post a Comment