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Thursday, August 4, 2011

अंतिम व्यथा .....

कादम्बिनी के प्रवेश स्तम्भ में प्रकाशित
 मेरी चार कविताएँ (चार ).....














अंतिम व्यथा .....  

वह निश्चेष्ट / निर्विकार
सोता 
उसका नन्हा बच्चा  रोता 
संकीर्णता को छोड़ 
 विस्तृत चिंतन में 
भटकता / दिखता / खोता 
उसका नन्हा बच्चा रोता
अपनी ओर आते दानवीय पंजों को 
गर्दन के घेरे में पाकर 
आशंकित होता 
उसका नन्हा बच्चा रोता
काल चक्र की लहरों में
संघर्ष करते कमज़ोर हाथ 
भविष्य का बोझा ढोता
उसका नन्हा बच्चा रोता 
टिमटिमाती रौशनी के सामने 
चमकती 
दो मासूम आँखें देखकर 
व्यथित होता 
उसका नन्हा बच्चा रोता 

घनश्याम   वशिष्ठ

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