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Sunday, August 7, 2011

रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस

Sent: Fri, 5 August, 2011 10:58:57 AM
Subject: रक्षाबंधनः इदं राष्ट्राय इदं न मम!

रक्षाबंधनः इदं राष्ट्राय इदं न मम!
हीरालाल पांडेय
यह सुखद संयोग है कि इस सप्ताह रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस आसपास मनाये जा रहे हैं। वैसे यह बात हमेशा से ही स्पष्ट है कि इन दोनों का सांझा संदेश भी है। रक्षाबंधन कब से मनाया जा रहा है? किस-किसने इस पर्व मंे अपने प्राण-प्रंण से रंग भरे हैं? सूक्ष्मान्वेषण करने पर सुदर्शन चक्र से श्रीकृष्ण की घायल अंगुली पर अपनी साड़ी फाड़कर बांधती द्रोपदी की छवि सामने अंकित होती है तो राजा बलि का दंभ तोड़ने का पराक्रम देखने को मिलता है। कहा तो यह भी जाता है कि देवों और दानवों के युद्ध में जब देवता हारने लगे, तब वे देवराज इंद्र के पास गए। देवताओं को भयभीत देखकर इंद्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बाँध दिया। इससे देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने दानवों पर विजय प्राप्त की। यदि बहुत पुराने समय में न जायें तो याद आता है कि गुजरात में नागौर किले की फिरोजशाह द्वारा घेराबंदी किए जाने पर वहाँ के राजा मानसिंह की पुत्री पन्नादेवी द्वारा अरिकन्द के राजा उम्मेद सिंह को भावभरे पत्र संग भेजी गई राखी ने गौडवान किले की पराजय और हजारों क्षत्रणियों को जौहर करने से बचा लिया था तो महारानी कर्मवती द्वारा हुमायुं को भेजी राखी संग राज्य की रक्षा की कामना की बात किसे याद नहीं है। यह भी भुलाये नहीं भूल सकती कि सिकन्दर की प्रेमिका ने भारतीय नरेश पोरस को राखी बांधकर सिकन्दर की प्राण रक्षा का संकल्प लेना इतिहास का एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। कहा जाता है कि विश्व विजेता बनने निकले सिकन्दर संग युद्ध मंे एक अवसर ऐसा भी आया था जब राजा पोरस उसका वध कर सकते थे लेकिन उन्होंने राखी की लाज रखते हुए ऐसा नहीं किया। 
राखी आज बेशक बहन द्वारा भाई को राखी बांधने तथा भाई द्वारा उसे उपहार देने तक सिमटता दिखाई दे रहा हो लेकिन कभी मातृभूमि पर आये संकट का सामना करने जा रहे वीरों को उस नगर की नारियाँ तिलक लगा, हाथ पर रक्षा सूत्र बांधते हुए जहाँ उससे वतन की रक्षा का वचन लेती थी वहीं परमात्मा से उन भुजाओं को बल और अमरत्व प्रदान करने की प्रार्थना भी करती थी ताकि वे राष्ट्र-रक्षा कर सके।
जहाँ तक स्वतंत्रता दिवस के महत्व का प्रश्न है, किसी भी राष्ट्र के लिए उसकी सर्वभौमिकता उसकी प्राण- वायु है। पराधीन राष्ट्र को प्रतिक्षण अपमानित होना पड़ता है इसीलिए उस राष्ट्र के सुपुत्र अपने प्राणों का बलिदान देकर भी इस कलंक को समाप्त करते हैं। इतिहास गवाह है भारत की आजादी की लड़ाई ऐसे असंख्य बलिदानों की बुनियाद पर ही लगातार अपने लक्ष्य की और बढ़ती रही है। मंगल पाण्डे से आरंभ हुई यह श्रृंखला तिलका मांझी, लाला लाजपतराय, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अश्फाकुल्ला खां, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जैसे असंख्य, अनाम रणबांकुरों की दास्तान है। 15 अगस्त 1947 को प्राप्त हुई खंडित आज़ादी न केवल हमारे लिए बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए खतरे का सबक बन रही है। अमेरिका में ट्विन टावर काण्ड से आज तक के समस्त आतंक की काली छाया हमारी खंडित आज़ादी की अवैध संतान के कारण ही दिखाई पड़ रही है। 
वर्तमान भारत जहाँ एक और लगातार सीमापार से आयातित आतंकवाद से आहत है, वहीं अनेक राष्ट्र-विरोधी शक्तियां भी सिर उठा रही है। जाति, धर्म, पा्रन्त, भाषा, सम्प्रदाय के नाम पर हमारे समाज को बांटने की कोशिशें तो लगातार होती रही हैं लेकिन सेवा की आड़ में धर्मान्तरण व्यापार बन रहा है। ऐेसे कुछ तत्व अपने अभियान को गति प्रदान करने के लिए भारतीय संस्कृति और इस देश के धार्मिक विश्वासों को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। धर्मान्तरण राष्ट्रांतरण का पर्याय बन रहा है। इस दिशा में जागरूकता फैलाने वालों को दबाने के प्रयास जारी है। झूठे प्रायोजित आरोपों को ढाल बनाकर राष्ट्रवादियों की आवाज दबाने की कोशिशें तो लंबे समय से जारी है लेकिन अब साम्प्रदायिक दंगों की रोकथाम के नाम पर ऐसा कानून बनाने की  तैयारी हो रही है जो इस देश की माटी की खुशबू और संस्कृति को पंगु बनाकर रख देगा। इस कानून में ऐसे प्रावधान किये जा रहे हैं जो किसी को भी अकारण फंसा सकते हैं। पक्षपाती ढ़ंग से तैयार प्रावधान समुदाय विशेष को विशेषाधिकार तथा देश की बहुसंख्यक जनता को दूसरे दर्जे का नागरिक बना सकते हैं। ऐसे में इस बार का रक्षाबंधन निर्णायक अवसर है जब हम राष्ट्र-रक्षा तैयारी भी करें। राष्ट-रक्षा का अर्थ उसकी सीमाओं की रक्षा तक सीमित नहीं होता अपितू राष्ट्र की संस्कृति, उसके समस्त नागरिक, वन, पर्यावरण, परंपरा, प्रतिष्ठा की रक्षा भी शामिल है। जब तक इस राष्ट्र का एक भी नागरिक उपेक्षित है, राष्ट्र के विकास की सार्थकता नहीं हो सकती। यदि हमारा विकास हमें हमारे सांस्कृतिक मूल्यों और हमारे पूर्वजों की कीर्ति से विमुख करता है तो उस पर पुःर्विचार होना ही चाहिए।
भ्रष्टाचार देश की जड़ों को खोखला कर आम आदमी की दशा सुधारने में बाधक बन रहा है इसलिए हम जहाँ भी हैं, हर हाल में भ्रष्टाचार का समूल नाश करने के लिए सचेष्ट रहें। भ्रष्टाचार की गंगोत्री बन चुकी राजनीति का शुद्धिकरण करने का संकल्प राष्ट्र-रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। हम अपना प्रतिनिधि चुनते समय उस दल की नीतियों, उसका पिछला प्रदर्शन, उसके नेतृत्व का ध्यान तो रखें ही, साथ-ही-साथ उम्मीदवार के व्यक्तिगत चरित्र, उसकी सत्य निष्ठा को भी नज़रअंदाज न करने का प्रण लें। जो उम्मीदवार किसी भी गलत-सही तरीके से हमारी निष्ठा को खरीदने का प्रयास करे उसका माल डकार कर भी उसे सबक सिखाना हमारे राष्ट्र-रक्षा संकल्प का एक सूत्र हो सकता है। 
राष्ट्र में समरसता रहें। प्रेम-भाईचारा रहे इसलिए हमें मनुष्य और मनुष्य मंे भेदभाव को हमेशा के लिए त्याग कर ‘सभी हिन्दु सहोदर’ का भाव स्थायी रूप से हृदयांगम् करना चाहिए। कन्याभू्रण हत्या हमारे मस्तक का कलंक है। इसके विरूद्ध जनजागरण के लिए स्वयं को उदाहरण के रूप मंे प्रस्तुत करने का संकल्प लेना राष्ट्र रक्षाबंधन पर हर्गिज नहीं भूला जाना चाहिए। इस दिशा में हमें आज और अभी जागना होगा वरना कल देरी हो चुकी होगी। यदि हमारी बेटियां ही नहीं बचेगी तो राष्ट्र-रक्षा हेतू वीरों को जन्म देने वाली माताएं कहाँ से आएगी? 
ऐसे कुछ अन्य संकल्प भी हो सकते हैं जिनकी चर्चा हमें अपने मित्रों, परिजनों और अन्यों से भी करनी चाहिए। इस बार का रक्षाबंधन-राष्ट्र रक्षाबंधन के रूप में प्रतिष्ठित हो, इसकी शुरूआत स्वयं से करनी होगी। स्मरण रहे- भारत भूमि, भारतीय संस्कृति हमारी अस्मिता की पहचान है। यदि यही सुरक्षित नहीं रही तो हम स्वयं को इस माटी का पुत्र कहेंगे भी तो कैसे?
हमारा राष्ट्र-रक्षा संकल्प होना चाहिए- धार्मिक विेद्वेष फैलाने वाले कानून का डटकर विरोध, निज धर्म एवं संस्कृति की रक्षा, सभी के प्रति सहोदर व्यवहार, कन्या-भू्रण हत्या निषेध, भ्रष्टाचार के नाश के लिए राजनीति का शुद्धिकरण। बिना किसी राजनैतिक पचडे़ में पड़े हम कांग्रेसी, भाजपायी, कम्युनिस्ट, सपाई, बसपाई, जनता दली, अकाली अथवा कुछ भी हो सकते हैं लेकिन जहाँ तक राष्ट्र की अस्मिता का प्रश्न है- हमें महाभारत का वह प्रसंग दोहराना होगा- वयम् पंचाधिक शतम् अर्थात् आपसी प्रतियोगिता में हम बेशक पाँच और वे सौ हो लेकिन राष्ट्र विरोधियों से दो-दो हाथ करने में हम एक सौ पांच हैं। 
राष्ट्र एक आत्मा और एक आध्यात्मिक सिद्धान्त का नाम है। दो चीजें जो वास्तव में एक ही हैं इस आध्यात्मिक सिद्धांत की रचना करती हैं। एक का संबंध हमारे अतीत से है तो दूसरे का वर्तमान से। एक स्मृतियों की समृद्ध धरोहर  है जिस पर हमारा सांझा अधिकार है तो दूसरी है सदा-सदा साथ रहने की कामना। सामुहिक रूप से मिली इस धरोहर को आगे ले जाने के संकल्प के रूप में व्यक्त करना चाहिए। दुनिया के सभी सज्जन लोग केवल तत्कालिकता में नहीं जीते। राष्ट्र व्यक्ति की तरह संघर्ष, बलिदान और निष्ठा की एक लंबी परंपरा का परिणाम होते हैं। दुनिया भर के सभी पूजा-पंथ अपने पूर्वजों के पंथ अर्थात ‘हम जो हैं उन्हीं की वजह से हैं’ का विस्तार होते हैं। एक उदात अतीत, महान सांझेनायक और गौरव जैसी संपदायें किसी राष्ट्र की नींव होती हैं। अतीत के सांझे-गौरव और वर्तमान के सांझे-संकल्प ही भविष्य का निर्माण करते हैं। यह सर्वविदित है कि बुद्धि की सजगता और मन का जोश राष्ट्र की जीवांतता की कसौटी होती है। आइये राष्ट्र रक्षाबंधन के पावन पर्व पर हम सबसे पहले स्वयं से ही पूछें कि क्या हम जीवांत राष्ट्र के जीवांत पुत्र हैं? यदि इसका उत्तर हाँ में है तो समझो सफल रहेगा राष्ट्र रक्षाबंधन अर्थात् इदं राष्ट्राय इदं न मम!

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