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Tuesday, August 9, 2011

शब्दिका .....


शब्दिका ----
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स्वार्थ ने
हमें
कितना छला है ॥
कुर्सी के सामने
देश
दूर हो चला है ॥
विचार .मंथन ,
गम्भीर चिन्तन ,
महज़ गप्प है ...
जब देखो तब
संसद ढप्प है ......
तनावी सागर मे
तीज त्यौहार
हर्ष,उल्लास ,आनन्द
भूले हैं ....
सिर्फ
आश्वासनों के झूले हैं ......
अहम में हम
कितने फूलेहैं ......
जबकि
हमारे सभी स्वप्न
लंगड़े और लूले हैं -------------------------
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प्रकाश प्रलय कटनी ****------------------

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