हास्य-व्यंग्य-
देश सेवा हमारा खानदानी पेशा है
(अनशन के बाद का
प्रलाप)
पंडित सुरेश नीरव
जनता को अपनी
औकात में रहना चाहिए। ये सरासर गुंडागर्दी है कि कुछ सड़किए भीड़ जमा करके एक अदद
अनशन की दम पर अकड़कर हमें हुक्म दें कि फलां बिल पास करो,फलां विधेयक लाओ और अभी
लाओ। किसने दे दिया इन्हें ये अधिकार। अरे इनकी औकात बस इतनी ही है कि ये हमें वोट
दें,हमें जिताएं और अगले पांच साल तक हमारे सामने पूंछ हिलाएं। ससुर हम पर ऑर्डर
झाड़ेंगे। जनसेवक हम अपने को क्या कह दिए, ये तो हमारे सिर पर चढ़कर ही भांगड़ा
करने लगे हैं। अन्ना की औलाद कहीं के। सर पर टोपी लगा ली और कहने लगे कि मैं अन्ना
हूं। अरे राजनीति आखिर राजनीति है। कोई बच्चों का खेल नहीं। और अगर बच्चों का खेल
है भी तो यह सिर्फ हमारे बच्चों का खेल है। हम लोग दिनभर समाजसेवा में लगे रहते
हैं। अरे हमारे बच्चे अगर राजनीति नहीं करेंगे तो क्या मंगल ग्रह से बच्चे आएंगे
राजनीति करने। हम खानदानी लोग हैं। राजनीति हमारा खानदानी पेशा है। हम चाहे
कांग्रेस में हों,चाहे सपा में, चाहे लोकदल में हों, चाहे राष्ट्रीय लोकदल में।
राष्ट्रीय काग्रेस में हों चाहे द्रुमुक में। तेलुगुदेशम में हों चाहें उत्कल कांग्रेस
में। सभी जगह हमारे बच्चे और बहू-बेटियां ही देश सेवा कर रहे और कर रही हैं। हम पर
ये भी आरोप गलत है कि हम सिर्फ अपने ही घर के लोगों को राजनीति में आगे लाते हैं।
ऐसा नहीं है कई बार हम अपनी प्रेमिकाओं को भी आगे लाने की उदारता दिखाते हैं। अरे परिवार
मजबूत होगा तभी तो समाज मजबूत होगा। समाज मजबूत होगा तभी तो देश मजबूत होगा। और
देश में भाई चारा पनपेगा। हम कुछ लोगों के परिवारों के बूते ही तो इस देश में
लोकतंत्र सलामत है वरना कब का यह देश तानाशाही की गिरफ्त में आ जाता। रात-दिन
मेहनत करके हम कुछ फेमलियां हीं इस लोकतंत्र को बचाए हुईं हैं। और इधर कुछ सड़कछाप
लोग हमें हुकुम पेल रहे हैं कि फलां विधेयक फलां-फलां तारीख तक पास करो वरना हम
अनशन कर देंगे। इनके पिट्ठू हमें अनपढ़ और गंवार कह रहे हैं। अरे हमारी संसद का
मज़ाक उड़ाने की इनकी हिम्मत। औकात है तो लोकसभा तो क्या पंचायत का ही चुनाव लड़कर
दिखा दो। नानी याद आ जाएगी जब चुनाव में लुटिया डूब जाएगी। चले हैं देश का नेता
बनने। गांधी टोपी लगाकर अनशन करनेभर से भला कोई गांधी बन जाता है। हमें देखिए।
तीन-तीन मर्डर करके भी हमने अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा। अब हमारे नेता ने दस-बारह
दिन तक इनकी नौटंकी के फेवर में कोई भाषण नहीं दिया तो लगे ये चिरकुट उनका मज़ाक उड़ाने।
थोड़ी-सी भीड़ क्या जुटा ली अपनी औकात ही भूल गए। अरे भीड़ तो क्रिकेट मैच में भी
खूब जुटती है। और जो खिलाड़ी सेंचुरी बनाता है उसके लिए ताली भी खूब बजाती है,
लेकिन उस खिलाड़ी की गुलाम थोड़े ही हो जाती है। एक मैच जीत लेने पर कप्तान को
भारतरत्न दिलाने को मचलती भीड़ अगले ही मैच में हार जाने पर उसी कप्तान के घर
पत्थर भी उसी उत्साह से फेंकती है। भैया..भीड़ और भेड़ को तो चराना पड़ता है।
जिसने इन पर भरोसा कर लिया समझो उसका रायता शर्तिया किसी चौराहे पर फैलेगा। और
जल्दी फैलेगा। अरे भीड़ तो मदारी और मजमेबाज मेवाफरोश भी फुटपाथ पर खूब जुटा लेते
हैं। तो क्या इन्हें डायरेक्ट मंत्री बना दें। अरे भाई भीड़ को वोट में बदलने का
हुनर तो सिर्फ हम कुछ चंद लोग ही तो जानते हैं। इन फालतू लोगों का क्या है। ये तो
अगर कोई मास्टर किसी छात्र को क्लास से बाहर निकाल दे तो य़े सीधे शिक्षामंत्री का
स्तीफा मांगने के लिए अनशन पर बैठ जाएंगे। और कहेंगे कि संविधान में परिवर्तन कर
कल तक मंत्री को बाहर निकालो। मजाक बना रखा है देश का और लोकतंत्र का। फौजी कार
चलाना और सरकार चलाना एक समझ रक्खा है,इन लोगों ने। मेरी अपील है देश के हरेक
सांसद से कि वे संसद को संसद बने रहने देने में अपना-अपना भाईचारा दिखाएं । इसे
किरणवेदी की पाठशाला कतई न बनने दें। हमें अपने बच्चों का भविष्य देखना है। बच्चे
भगवान का रूप होते हैं। बच्चे चाहे हमारे हों चाहे आपके। सभी भगवान का रूप हैं। और
इस देश को भगवान ही चला रहा है और आगे भी चलाएगा। आज के बच्चे कल के सीएम-पीएम।
चुनाव क्या होता है क्या मालुम इन फकीरों को। बोरियों में नोट भर-भरके मुहल्लों में
पहुंचाने पड़ते हैं। बंग्लादेश,नेपाल और पाकिस्तान तक से नोट खरीदने पड़ जाते हैं।
वो भी असली कड़क नोट दे-देकर। अब जो बोएगा वही तो फसल काटेगा। ठलुए इसे भ्रष्टाचार
कहते हैं। अरे आज जो विपक्ष में है कल वो भी सरकार में हो सकता है। और जो आज सरकार
में है कल वो विपक्ष में बैठ सकता है। यह सब तो प्रभु की लीला है। हमें आपसदारी से
और समझदारी से काम लेना चाहिए। और यह तभी हो सकता है जब हम यह तय कर लें कि सड़क
संसद पर हावी न हो। वरना चुनाव के समर में निबट जाने के बाद हम में से कई साथियों
को मजबूरन वो टोपी खरीदनी पड़ सकती है जिस पर लिखा हो-मैं अन्ना हूं।.
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