श्री भगवान सिंह हंसजी,
आप ने ही सिर्फ मेरे व्यंग्य को ध्यान से पढ़ा है बाकी ने यदि पढ़ा है तो शायद उनकी समझ में नहीं आया। आप ही तो हैं जो मुझे समझ पाते हैं। मनुष्य को भगवान समझ ले इससे ज्यादा उसे और चाहिए भी क्या। चलिए आपने समझा तो सबने समझा। आपकी टिप्पणी बहुत रोचक लगी। अपने व्यंग्य से भी ज्यादा। आपको बधाई..
पालागन...
जयलोकमंगल
पंडित सुरेश नीरव
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