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Sunday, August 28, 2011

एक हज़ल

कभी ज़िन्दगी में हम-तुम, ऐसी भी तुक मिलाएं
कभी तुम हमें सुनाओ, कभी हम तुम्हें सुनाएं।

बरसात का है मौसम, मदमस्त हैं घटाएं
तुम गीत छेड़ो लब से, हम दिल से गुनगुनाएं।

तुम ऐश कर के झूमो, पर याद ये भी रखना
बूढ़े बदन में फिर से, सावन न लहलहाएं।

खुजली की दवाओं पर, क्यूँ अपना धन लुटाएं
कभी तुम हमें खुजाओ, कभी हम तुम्हें खुजाएँ।

मक़बूल ने सुनाई अपनी ग़ज़ल जहां भी
भूतों ने छोड़ा डेरा, भगने लगीं बलाएं।
मृगेन्द्र मक़बूल

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