उम्र भर का हमसफ़र साहिल कहाँ से लाओगे
ख़ुद ही हल हो जाए, वो मुश्किल कहाँ से लाओगे।
दुश्मनों में दोस्ती का भी कहीं एहसास हो
गाल पर दुश्मन के ऐसा तिल कहाँ से लाओगे।
ज़िन्दगी भर राह में बोते रहे काँटों के बीज
ख़ुद जो चल के आए, वो मंज़िल कहाँ से लाओगे।
है जहां पर गंध चन्दन की, वहां विषधर भी हैं
जस में हों बस दोस्त, वो महफ़िल कहाँ से लाओगे।
अपने अरमानों का ख़ुद ही क़त्ल तो करते रहे
वो जो ख़ुद मकतूल हो क़ातिल कहाँ से लाओगे।
सच्चे दिल से प्रार्थना की बात करते हो पराग
यह तो बतलाओ कि सच्चा दिल कहाँ से लाओगे।
पराग
प्रस्तुति-मृगेन्द्र मक़बूल
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