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Saturday, September 3, 2011

वहम-सा थरथराते तुम


आज एक नया गीत प्रस्तुत है-
       तुम...
ओढ़कर नींद की चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात के तानपूरे पर लोरियां-सी सुनाते तुम

महकती जाफरानों की रेशमी-सी हवाओं में
पत्तियों के हरेपन की ओस भीगी निगाहों में
बर्फ़ के सर्द परदे में कहीं हंसते-हंसाते तुम

ओढ़कर नींद की चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात के तानपूरे पर लोरियां-सी सुनाते तुम

 हुस्न की आंच में दमके शोख चेहरे ये लम्हों के
सुबह की रूह में जागे हज़ारों गीत झरनों के
बादलों के दरीचों से धूप-सा खिलखिलाते तुम

ओढ़कर नींद की चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात के तानपूरे पर लोरियां-सी सुनाते तुम

कभी चुप्पी के आंचल में छिपाकर फूल यादों के
प्यार के हाथ में लेकर कभी कचनार वादों के
कभी ओठों पर आहट के वहम-सा थरथराते तुम

ओढ़कर नींद की चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात के तानपूरे पर लोरियां-सी सुनाते तुम।
पंडित सुरेश नीरव

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