आज
एक नया गीत प्रस्तुत है-
तुम...
ओढ़कर
नींद की चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात
के तानपूरे पर लोरियां-सी सुनाते तुम
महकती
जाफरानों की रेशमी-सी हवाओं में
पत्तियों
के हरेपन की ओस भीगी निगाहों में
बर्फ़
के सर्द परदे में कहीं हंसते-हंसाते तुम
ओढ़कर
नींद की चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात
के तानपूरे पर लोरियां-सी सुनाते तुम
हुस्न की आंच में दमके शोख चेहरे ये लम्हों के
सुबह
की रूह में जागे हज़ारों गीत झरनों के
बादलों
के दरीचों से धूप-सा खिलखिलाते तुम
ओढ़कर
नींद की चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात
के तानपूरे पर लोरियां-सी सुनाते तुम
कभी
चुप्पी के आंचल में छिपाकर फूल यादों के
प्यार
के हाथ में लेकर कभी कचनार वादों के
कभी
ओठों पर आहट के वहम-सा थरथराते तुम
ओढ़कर
नींद की चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात
के तानपूरे पर लोरियां-सी सुनाते तुम।
पंडित
सुरेश नीरव
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