
वर्ष २००६ में बिस्मिल जी के जीवन पर आधारित मेरा प्रबंध काव्य 'बिसमिल चरित' प्रकाशित हुआ ।इसके अंतर्द्वंद सर्ग में सजा हो जाने के बाद बिसॉमिल जी मनःसएथिति को चित्रित करने का विनम्र प्रयास मैने किया है आंदोलन की असफलता और लोगों का असलि चरित्र सामने आने पर क्रांतिकारी मन पर बीतती है कहने की कोशिश की है---
जनक औृर जननी का जीवन हम सबने ही होम कर दिया
सुख संपति प्रभुता ,ममता को अंगारों पर स्वयं धर दिया
किंतु निकम्मे और नकारा इस समाज में जोस नही है---------क्रमशः
जितना भी कर सका किया मुझे कोई अफसोस नही है
उठते प्रश्न हजारों मन में विषधर से डसते हैं मुझको
इस कायर समाज की खातिर क्यों मरना सूझा था तुझको?
तू तो उच्च वर्ण कुल का था तेरे घर में कौन कमीं थी
तेरे दिल में ही क्यों आखिर देशप्रेम की ज्वाल जली थी ?
देश, सिर्फ तेरा ही नही है, तू भी कर सकता था घातें
तू भी सुख से रह सकता था कर सकता था हंस-हंस बातें
क्रुर -काल से आखिर कब तक चल पायेगी तेरी लडाई?
तन- मन -धन सब दिया देश को फिर भी कोई लहर ना आई------क्रमशः
अरविंद पथिक------क्रमशः
अरविंद पथिक
No comments:
Post a Comment