गीत-
ख्वाब में रोज़
आते तुम
ओढ़कर नींद की
चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात के तानपुरे
पर लोरियां-सी सुनाते तुम
महकते जाफरानों
की रेशमी-सी हवाओं में
पत्तियों के
हरेपन की ओसभीगी निगाहों में
बर्फ़ के सर्द
पर्दे में कहीं हंसते-हंसाते तुम।
ओढ़कर नींद की
चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात के तानपुरे
पर लोरियां-सी सुनाते तुम।
हुस्न की आंच में
दमके शोख चहरे ये लम्हों के
सुबह की रूह में
जागे हजारों गीत झरनों के
बादलों के दरीचों
से धूप-सा खिलखिलाते तुम।
ओढ़कर नींद की
चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात के तानपुरे
पर लोरियां-सी सुनाते तुम।
कभी चुप्पी के
आंचल में छिपाकर फूल यादों के
प्यार के हाथ में
थामे कभी कचनार वादों के
कभी होठों पर आहट
के वहम-सा थरथराते तुम।
ओढ़कर नींद की
चादर ख्वाब में रोज़ आते तुम
रात के तानपुरे
पर लोरियां-सी सुनाते तुम।
पंडित सुरेश नीरव
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