ब्लॉग के सभी मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभ कामनायें.मेरी पिछली प्रस्तुत ग़ज़ल को प० सुरेश
नीरव ने बहुत सराहा। ग़ज़ल वाकई बेहतरीन है। उनके कहने से मुझे ऐसा एहसास हुआ कि वो
शायद उस ग़ज़ल को मेरी ग़ज़ल समझ रहे हैं, इस लिए उनका भ्रम दूर करने के लिए स्पस्ट करना
चाहता हूँ कि वो ग़ज़ल मशहूर शायर राहत इन्दौरी की है.आज काफी दिनों बाद कम्पूटर महोदय
की तबीयत ठीक हुई है, लिहाजा नरेश कुमार शाद की एक ग़ज़ल पेश है।
ये इंतज़ार ग़लत है कि शाम हो जाए
जो हो सके तो अभी दौरे-जाम हो जाए।
ख़ुदा-न-ख्वास्ता पीने लगे जो वाइज़ भी
हमारे वास्ते पीना हराम हो जाए।
मुझ जैसे रिंद को भी तूने हश्र में यारब
बुला लिया है तो कुछ इंतज़ाम हो जाए।
वो सहने-बाग़ में आए हैं मयकशी के लिए
ख़ुदा करे कि हर इक फूल जाम हो जाए।
मुझे पसंद नहीं, इस पे गाम- ज़न होना
वो रहगुज़र जो गुज़रगाहे-आम हो जाए।
मृगेन्द्र मक़बूल
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