ब्लॉग के सभी मित्रों को विजयादशमी की हार्दिक शुभ कामनाएं.उपस्थिति दर्ज़ कराते
हुए एक ग़ज़ल पेश है।
कवि का ह्रदय सरल होता है
भीतर मगर गरल होता है।
हिम पर्वत के ही अंतस में
पावन गंगाजल होता है।
साहस के तेवर के आगे
हर मुश्किल का हल होता है।
स्याह अंधेरी रात के ढलते
यार सुनहरा कल होता है।
तख़्त ताज को ख़ाक बना दे
बहुत बुरा ये छल होता है।
दुनिया के जंगल में केवल
माँ का ही संबल होता है।
मक़बूल जिसे पढ़ता है यारो
उसका नाम ग़ज़ल होता है।
मृगेन्द्र मक़बूल
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