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Friday, October 28, 2011

गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर


 
राकेश पांडे
कविता-
(उन गिरमिटियों की श्रमसाधना को समर्पित जिनके कारण आज हिंदी विश्वभाषा बनीं)  
 
गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर
 गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर
 बन गए राखी-रोली चन्दन ,
 माथ लगाते गिरमिटिया
 कंठ - कंठ करते  वंदन .
 गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर
 बन गए राखी-रोली चन्दन.
 हिंदी मात-भ्रात स्वरूपा
 मन से मन का मेल कराए ,
 द्वेष क्लेश निर्मूल करे .
 सबको मिलता स्नेह स्पंदन .
 गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर
 बन गए राखी-रोली चन्दन
 कोड़ों की भाषा के स्वर हैं
 लाल पसीने का सागर
 हिंदी बनी आत्मबल सबका
 ईख ईख हो जाती नंदन .
 गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर
 बन गए राखी-रोली चन्दन.
 धन्य हो गाँधी धन्य रामगुलाम
 हिंदी का ध्वज तुमने थामा
 विश्व हिंदी हुई अविरल अविराम
 हिंदी-हिंदी का है नभ में गुंजन .
 गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर
 बन गए राखी-रोली चन्दन.
 -राकेश पाण्डेय
संपादकःप्रवासी संसार 
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शोभा रस्तोगी
ब्रह्मभोज के बारे में
शोभा रस्तोगी शोभा की लघुकथा ब्रह्मभोज आज मानवीय मूल्यों के दरकने और गाढ़े हो रहे सामाजिक-पाखंड पर बड़े महीन ढंग से प्रहार करती है। बधाई..
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