राकेश पांडे |
कविता-
(उन गिरमिटियों की श्रमसाधना को समर्पित जिनके कारण आज हिंदी विश्वभाषा बनीं)
गन्ने
के खेतों में हिंदी के आखर
गन्ने के खेतों में
हिंदी के आखर
बन गए राखी-रोली
चन्दन ,
माथ लगाते गिरमिटिया
कंठ - कंठ करते वंदन .
गन्ने के खेतों में
हिंदी के आखर
बन गए राखी-रोली
चन्दन.
हिंदी मात-भ्रात
स्वरूपा
मन से मन का मेल
कराए ,
द्वेष क्लेश निर्मूल
करे .
सबको मिलता स्नेह
स्पंदन .
गन्ने के खेतों में
हिंदी के आखर
बन गए राखी-रोली
चन्दन
कोड़ों की भाषा के
स्वर हैं
लाल पसीने का सागर
हिंदी बनी आत्मबल
सबका
ईख ईख हो जाती नंदन .
गन्ने के खेतों में
हिंदी के आखर
बन गए राखी-रोली
चन्दन.
धन्य हो गाँधी धन्य
रामगुलाम
हिंदी का ध्वज तुमने
थामा
विश्व हिंदी हुई
अविरल अविराम
हिंदी-हिंदी का है
नभ में गुंजन .
गन्ने के खेतों में
हिंदी के आखर
बन गए राखी-रोली
चन्दन.
-राकेश पाण्डेय
संपादकःप्रवासी संसार
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शोभा रस्तोगी |
ब्रह्मभोज के बारे में
शोभा रस्तोगी शोभा की लघुकथा ब्रह्मभोज आज मानवीय मूल्यों के दरकने और गाढ़े हो रहे सामाजिक-पाखंड पर बड़े महीन ढंग से प्रहार करती है। बधाई..
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