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Sunday, October 30, 2011

गधे की निंदा आजतक बड़े-बड़े नामवर भी नहीं कर पाए




दुनिया के जितने भी महान लोग हैं उनमें ज्यादातर निंदा के नर्सिंग होम में ही जन्मे हैं। कंस की वीआईपी जेल में जन्म लेनेवाले कृष्ण,महाभारत के कर्ण और बाइविलवाले ईसा मसीह से लेकर फक्कड़ी के ब्रांड एंबेस्डर कबीरदास इस के ग्लोबल उदाहरण हैं। इनकी शौहरत देखकर तो लगता है कि बिना कंट्रोवर्सी की अपुन ने पैदा होकर बहुत बड़ी गलती की। 


हास्य-व्यंग्य-
निंदा की प्रशंसा
पंडित सुरेश नीरव
निंदा जिंदा मनुष्य की ऐसी आनंददायक क्रीड़ा है जिस का लुत्फ वो मरते दम तक पूरे उत्साह से उठाना चाहता है। अफसोस है कि मरे लोग इसका आनंद नहीं उठा पाते। वे लोग क्या खाक जिंदा है जो किसी की निंदा तक नहीं कर पाते। दुनिया के जितने भी महान लोग हैं उनमें ज्यादातर निंदा के नर्सिंग होम में ही जन्मे हैं। कंस की वीआईपी जेल में जन्म लेनेवाले कृष्ण,महाभारत के कर्ण और बाइविलवाले ईसा मसीह से लेकर फक्कड़ी के ब्रांड एंबेस्डर कबीरदास इस के ग्लोबल उदाहरण हैं। इनकी शौहरत देखकर तो लगता है कि बिना कंट्रोवर्सी की अपुन ने पैदा होकर बहुत बड़ी गलती की। समाज हमारी निंदा क्या करता अपनी तो हीजड़े भी बधाई देकर खिल्ली उड़ा गए। खिल्ली और निंदा में उतना ही फर्क होता है जितना कि गधे और गोड़से में। गधे की खिल्ली तो कोई भी उड़ा सकता है मगर गधे की निंदा आजतक बड़े-बड़े नामवर भी नहीं कर पाए हैं। हमें भी किसी ने निंदा योग्य नहीं समझा इसलिए महान होने की दुर्घटना से हम हमेशा बाल-बाल बचते रहे। सचमुच निंदा के मामले में मैं कतई नालायक हूं। निंदा झेलने के लिए बड़ा जिगरा चाहिए। निंदा वही झेल सकता है जिसकी खाल बहुत मौटी हो और जो दुर्दांत निंदकों के सामने चिकने घड़े की तरह दृढ़ता से डटा रहे। यूं भी हम न तो बाबा रामदेव हैं न अन्ना हजारे और न श्रीश्री रविशंकर जो दिग्गीराजा निंदा की निःशुल्क सेवा देने लपक कर आगे आ जाएं। हर ऐरा-रैरा-नत्थू खैरा अगर फोकट में ही निंदित होने लगा फिर तो चल गया आलोचना का भारी उद्योग। निंदा कराने के लिए इन्वेस्टमेंट करने की परंपरा आज ही नहीं गुजरे जमाने से चली आ रही है। तभी तो कबीरदास ने इशारों में कहा है- निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय। अर्थात जिसे निंदा कराने का शौक चर्राए वो कम-से-कम एक एलआईजी फ्लैट पहले निंदक को भेंट करे। आज भी निंदा की सुपारी उठानेवाले पेशेवर बाहुबली आलोचक लेखक को उसकी निजी सहमति और सहयोग से चूस-लूट कर ही साहित्य के स्पाईडरमैन बने हुए हैं। ये निंदा प्रशंसा की ही उलटबांसी है। निंदा का यही दर्शन है। जो दिखता है वह होता नहीं है। निंदक शत्रु नहीं शुभचिंतक होता है। और जिंदगीभर शुभ-लाभ की सिद्धि को साधनेलाले इस महान देश में बिना लाभ के कोई आपके शुभ के लिए क्यों सोचेगा। यह बड़ी महीन आपसदारी का मामला है। जैसे अमेरिका और पाकिस्तान का। आईएसआई और तालिबान का। नास्तिक और भगवान का। निंदक नियरे राखिए। यानीकि निंदक अगर पड़ोसी हो तो सोने पे सुहागा। इससे निंदा और निंदनीय कर्य दोनों ही करने में सुविधा रहती है। अब देखिए एक पड़ोसी निंदा
 की परवाह किए बिना पड़ोसिन को लेकर भाग गया। बगल में छोरा नगर में ढिंढोरा..। कितना चरित्रनान था पड़ोसी। अब कोई दूसरे मुहल्ले का शरीफ उसे लेकर भागता तो क्या इज्जत रह जाती मुहल्ले की। पड़ोसी अगर पड़ोसी का माल नहीं दबाएगा तो काहे का पड़ोसी। लड़की भगाने क्या युगांडा जाता। चीन हमारा मजबूत पड़ोसी है। हजारों कि.मी. जमीन दबाए बैठा है। अब पड़ोस की जमीन नहीं दबाएगा तो क्या जमीन दबाने न्यूयार्क जाएगा। पड़ोसी के माल पर हाथ साफ करना पड़ोसी का मौलिक अधिकार है। और उसमें भी अगर भाई हो फिर तो मजा ही आ जाता है। हिंदी-चीनी भाई-भाई। नेपाल, पाकिस्तान भी हमारे इसीलिए खास पड़ोसी देश हैं क्योंकि उन्होंने भी सप्रेम और ससम्मान उदारतापूर्वक हमारी जमीन खूब दबाकर दबाई है। हम ऊपर से इनकी निंदा करते हैं मगर दिल में भैयापा का भाव भी रहता है। भैयापा के इस भावुक भाव में ही निंदा का मनोहारी फूल खिलता है। भाई वही करते हैं जो भाई को करना चाहिए। चाहे ये भाई अंडरवर्ड के हों या रामायण के। बाली-सुग्रीव और रावण-विभीषण सगे भाई थे। एक-दूसरे के धुआंधार शुभचिंतक। औरंगजेब और दाराशिकोह भी सगे भाई थे। भाई के प्रेम में पागल होकर औरंगजेब ने खुद ना लटक कर हंसते-हंसते अपने भाई को फांसी पर लटका दिया। भाई के लिए भाई नहीं सोचेगा तो कौन सोचेगा। लोग भी शान से निंदा करते हैं। ये सभी महापुरुष निंदा से ही अभिनंदित हैं। निंदा प्रेम की ही हिंसक मुद्रा है। जब प्रेम गाढ़ा हो जाता है तो पति-पत्नी भी हिंसक मुद्रा में आ जाते हैं। सच्चे प्रेमी प्राय़ं प्रेमिकाओं के हाथों ही कत्ल होते हैं। आज भी हो रहे हैं। रोज़ हो रहे हैं। यही हमारी संस्कृति रही है। यह निंदा-प्रेम की ही चरम-सनातन मुद्रा है। निंदा करने को भावुक मन हमेशा घात लगाए बैठा रहता है। मौका लगते ही एक धोबी ने मर्यादा पुरुषोत्तम की निंदा करके उनकी छवि की सपरिवार वाट लगा दी। कुछ लोग शाल में जूते लपेटकर निंदा करते हैं कुछ ज्यादा उत्साही सीधा जूता मारकर ही निंदा कर देते हैं। श्रद्धेय चिंदंबरमजी और दादा प्रशांतभूषण ऐसे ही भाग्यशालियों में हैं। आज आर्थिक मंदी के दौर में जब कि बड़े-बड़े उद्योग दम तोड़ रहे हैं यह निंदा का भारी उद्योग ही है जो पूरी पुरातन शान के साथ आज भी फल-फूल रहा है। आज कई पेशेवर निंदक रोज एक नए शिकार की निंदा करने के बाद ही पानी पीते हैं और फिर पानी पी-पीकर नए उत्साह से दूसरे शिकार की निंदा में जुट जाते हैं। ये निंदा के बल पर ही इतिहास विजय करने पर आमादा हैं। इनके इतिहास में सिर्फ निंदा है। इनकी आंख कोई माई का लाल नीची नहीं कर सकता। कौन नीचा दिखा पाएगा इन्हें। यह नीचे देखते ही नहीं हैं। चमगादड़ की तरह उल्टे लटककर ऊपर देखने की इन्हें खानदानी सिद्धि प्राप्त है। कुछ लोगों का मानना है कि इनके  समग्र नीच वक्तव्य ऊपरवाले के आशीर्वाद से ही उपजते हैं। इनके इतिहास में निंदा है। निंदा की प्रशंसा इनका इतिहास है।
आई-204,गोविंदपुरम,गाजियाबाद
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पंडित सुरेश नीरव
मध्यप्रदेश ग्वालियर में जन्मे बहुमुखी रचनाकार पंडित सुरेश नीरव की गीत-गजल,हास्य-व्यंग्य और मुक्त छंद विभिन्न विधाओं में सोलह पुस्तकें प्रकाशित हैं। अंग्रेजी,फ्रेंच,उर्दू में अनूदित इस कवि ने छब्बीस से अधिक देशों में हिंदी कविता का प्रतिनिधित्व किया है। हिंदुस्तान टाइम्स प्रकाशन समूह की मासिक पत्रिका कादम्बिनी के संपादन मंडल से तीस वर्षों तक संबद्ध और सात टीवी सीरियल लिखनेवाले सृजनकार को भारत के दो राष्ट्रपतियों और नेपाल की धर्म संसद के अलावा इजिप्त दूतावास में सम्मानित किया जा चुका है। भारत के प्रधानमंत्री द्वारा आपको मीडिया इंटरनेशनल एवार्ड से भी नवाजा गया है। आजकल आप देश की अग्रणी साहित्यिक संस्था अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन के राष्ट्रीय महासचिव हैं।
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