दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए।
मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में
अब कहाँ जा के सांस ली जाए।
बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाए।
मेरे माज़ी के ज़ख्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाए।
बोतलें खोल के तो पी बरसों
आज दिल खोल कर के पी जाए।
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल
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