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Wednesday, October 12, 2011

आमद दर्ज़ हो

प० सुरेश नीरव द्वारा गुमशुदगी का इश्तहार पढ़ कर सोचा कि फौरन से पेश्तर आमद
दर्ज़ करा दूँ। लिहाज़ा आमद दर्ज़ की जाए। जी हाँ, उलटा प्रदेश में काफी उठा पटक
हो रही है। वैसे ये तो इब्तिदा-ऐ-इश्क है। बहन जी अगर सलामत रहीं तो पता नहीं
और क्या- क्या देखना पड़ेगा।
कुछ दिनों पहले एक ग़ज़ल कही थी मगर लगता है कि उस्तादों की नज़र नहीं पड़ी
इस लिए दोबारा नज़रे-इनायत है।
मिल जाए अगर तुझसे, मिलने का इक बहाना
बनती है तो बन जाए, मेरी ज़िन्दगी फ़साना।

हमने तुम्हारे दर तक फेरा लगा दिया है
भूलें न आप भी अब मेरी गली में आना।

दिखला के इक झलक सी, परदे में छिप गए हो
अब शाम ढल रही है, छोड़ो भी यूँ सताना।

ग़ज़लों की इस कहन में, मंज़र-कशी हमारी
तुमने तो देख ली है, देखेगा अब ज़माना।

अब रात हो रही है, सब बेक़रार होंगे
छोड़ो भी ऐसी बातें, छोड़ो भी ये बहाना।

फिर बिजलियाँ गिरेंगी, दिल पर हमारे देखो
तुम बिजलियाँ गिरा कर, ऐसे न मुस्कराना।

मक़बूल कह रहे हैं, पहले तो जाम भरिये
फिर मूड आ गया तो, छेड़ेंगे हम तराना।
मृगेन्द्र मक़बूल

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