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Thursday, October 13, 2011

मकबूलजी आपको बधाई


और आखिर बरामद हो ही गए मकबूलजी
बहुत दिनों के बाद आखिर मकबूलजी जयलोकमंगल के मुहल्ले में आ ही गए। और आए भी तो शानदार गजल की आमद के साथ। बहुत ही उस्ताना ग़ज़ल है। पढ़कर मन प्रसन्न हो गया। मैं मकबूलजी आपको बधाई देता हूं। खासकर इन चार शेरों के लिए-
पंडित सुरेश नीरव

मृगेन्द्र मकबूल
ग़ज़लों की इस कहन में, मंज़र-कशी हमारी
तुमने तो देख ली है, देखेगा अब ज़माना।

अब रात हो रही है, सब बेक़रार होंगे
छोड़ो भी ऐसी बातें, छोड़ो भी ये बहाना।

फिर बिजलियाँ गिरेंगी, दिल पर हमारे देखो
तुम बिजलियाँ गिरा कर, ऐसे न मुस्कराना।

मक़बूल कह रहे हैं, पहले तो जाम भरिये
फिर मूड आ गया तो, छेड़ेंगे हम तराना।
मृगेन्द्र मक़बूल

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