पिताश्री को जीवन में दो खुशियाँ अहम् हैं एक पुत्र के जन्म की और दूसरी पुत्र की शादी की.
देखिए विश्ववन्दित शब्दऋषि पंडित सुरेश नीरवजी अपने आत्मज चिरंजीव मनन चतुर्वेदी की शादी की ख़ुशी में उनके उत्सुक मन से रहा ही नहीं गया कि वे अपनी ख़ुशी का इज़हार बैंडमास्टर बनकर और बैंड बजाकर झूम झूमकर कर रहे हैं. यही तो है पिताश्री के अंतर्मन की आनंदानुभूति. अपनी वैदिक परम्परा के अनुसार अपने बेटे की शादी की ख़ुशी में माताश्री कूंए में अपने पैर लटकाकर बैठती है और बेटा कहता है कि माताजी उठो, मैं तेरे लिए बहु लाऊंगा. माताश्री को कितनी ख़ुशी होती है जिसका अंदाज नहीं है. इससे बड़ी ख़ुशी माता-पिता के लिए शायद और क्या होगी. मेरी तरफ से पिताश्री व माताश्री को बहुत-बहुत बधाई और आत्मजश्री को इस मंगलध्रुव के लिए सह्रदय आशीर्वाद.
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देखिए विश्ववन्दित शब्दऋषि पंडित सुरेश नीरवजी अपने आत्मज चिरंजीव मनन चतुर्वेदी की शादी की ख़ुशी में उनके उत्सुक मन से रहा ही नहीं गया कि वे अपनी ख़ुशी का इज़हार बैंडमास्टर बनकर और बैंड बजाकर झूम झूमकर कर रहे हैं. यही तो है पिताश्री के अंतर्मन की आनंदानुभूति. अपनी वैदिक परम्परा के अनुसार अपने बेटे की शादी की ख़ुशी में माताश्री कूंए में अपने पैर लटकाकर बैठती है और बेटा कहता है कि माताजी उठो, मैं तेरे लिए बहु लाऊंगा. माताश्री को कितनी ख़ुशी होती है जिसका अंदाज नहीं है. इससे बड़ी ख़ुशी माता-पिता के लिए शायद और क्या होगी. मेरी तरफ से पिताश्री व माताश्री को बहुत-बहुत बधाई और आत्मजश्री को इस मंगलध्रुव के लिए सह्रदय आशीर्वाद.
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