दो दिन बिना वज़ह व्यस्त रहा।नीरवजी खंडवा से पुन; दिल्ली पधार गये।स्वागत है।आप के स्वागत में कुछ पंक्तिया प्रस्तुत हैं-------
रबड की ही रीढ वाले सूरमा कहाते हैं
ऐंठते,दहाडते, गुर्राते जो मंच पर
नेपथ्य में दिखाते
दांत दुम को हिलाते है
प्रेमगीत गाने वाले जनता के मनमीत
निंदारस में खूब डुबकियां लगाते हैं
देख चुका बहुत बार संशय नहीं है,रंच
रबड की ही रीढ वाले सूरमा कहाते हैं
सत्य की टूटी हुई ढाल लिये पथिक जी
धुनते है सिर कुछ समझ नहीं पाते हैं
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