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Wednesday, November 30, 2011

कुछ दोहे

                चायनीज बनते नहीं, 

               चायनीज जब खायँ

चायनीज बनते नहीं, चायनीज जब खायँ।
फिर इंगलिश के मोह में, क्यूँ फ़िरंग बन जायँ।१।
 
क्यूँ छोडें पहिचान को, रहे छाँव या धूप।
अपने रँग में रँग रहे, उस का रंग अनूप।२।
 
चिंटू की माँ ने कहा, सुनिए टेसू राम।
ब्लोगिंग-फ्लोगिंग के सिवा, नहीं और क्या काम।३।
 
हर दम चिपके ही रहो, लेपटोप के संग।
फिर ना कहना जब सजन, दिल पे चलें भुजंग।४।
 
तमस तलाशें तामसी, खुशियाँ खोजें ख्वाब।
दरे दर्द दिलदार ही, सही कहा ना साब।५।
-मयंक

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