ए.वी.हंस |
व्यक्क्त में अव्यक्त के, प्रारब्ध में आरब्ध के..
मूल में निर्मूल के..कर्म में अकर्म के..और
हित में जनहित के..लोकतंत्र निर्दिष्ट है..
-ए.वी.हंस श्री ए.वी.हंस,
आपका मुक्त-मुक्तक बहुत गहराइयों से भरपूर है। और आज जब लोकतंत्र एक संक्रमणकाल से गुजर रहा हो तब इसकी ऐसी परिभाषा बहुत ही प्रशंसनीय है। सचमुच यह व्यक्त में अव्यक्त की ही इबारत है।
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