श्रद्धेय पंडितजी आपके दोहे बहुत ही शिक्षायोग्य हैं, मुझे निम्न दोहा बहुत ही बेहतरीन लगा, बहुत-बहुत बधाई-
क्यूँ छोडें पहिचान को, रहे छाँव या धूप।
अपने रँग में रँग रहे, उस का रंग अनूप।२।
पालागन
अमितजी आपको बहुत-बहुत बधाई नाद-अनाद की बेहतरीन परिभाषा के
लिए.
ऐसी अभिव्यक्ति और प्रतिभा के लिए बधाई. आपके शब्दों में-
नाद में अनाद के, शब्द में नि:शब्द के..
व्यक्क्त में अव्यक्त के, प्रारब्ध में आरब्ध के..
मूल में निर्मूल के..कर्म में अकर्म के..और
हित में जनहित के..लोकतंत्र निर्दिष्ट है..
व्यक्क्त में अव्यक्त के, प्रारब्ध में आरब्ध के..
मूल में निर्मूल के..कर्म में अकर्म के..और
हित में जनहित के..लोकतंत्र निर्दिष्ट है..
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