श्रीराम
लज्जामय बोल न राम,बिलोक भ्रात्र वियोग.
पुनि-पुनि सोचें रामजी, अमित काल संयोग.
काल के वचनानुसार भ्रात्र वियोग देखकर लज्जाशील राम बोल नहीं रहे हैं कि काल का संयोग अमित है.
लखन लख कही मधुरम वाणी,करि न संताप प्रभु सम्मानी.
पूर्व जन्म का है यह कर्मा, कालगति होय ऐसी धर्मा ,
देखकर लक्ष्मण ने मधुरम वाणी में कहा , हे प्रभु! हे सम्मानी! संताप मत करो. यह पूर्व जन्म का संस्कार है. हे धर्मग्य! कालगति ऐसी ही होती है.
निश्चित मम वध करो धर्मज्ञा. पूरण करो अपनी प्रतिज्ञा.
काकुत्स्थ! यह धर्म का नाता. वचन भंजक नरक में जाता.
हे धर्मग्य! आप निश्चित मेरा वध करो. आप अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो. हे काकुत्स्थ! यह धर्म का नाता है. वचनभंजक नरक में जाता है.
यदि मुझ पर तिहार अनुरागा. मम दंड दो हे महाभागा.
करो स्वधर्म वृद्धि रघुनाथा. यही जाय मानव के साथा.
यदि मुझ पर आपका स्नेह है तो हे महाभाग ! मुझको दंड दो. रघुनाथ! आप अपने धर्म में वृद्ध करो. हे प्रभु! धर्म ही मनुष्य के साथ जाता है.
प्रस्तुति--
योगेश
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