Search This Blog

Thursday, December 29, 2011

जाओ यार दो हजार ग्यारह


जाओ यार दो हजार ग्यारह
तुम भी सिद्ध हुये
लाचार,बेकार,मक्कार,  आवारा
दिखाते रहे सपने
हमसे बिछुडते रहे अपने
सारी दुनिया में होता रहा रक्तपात
मनुष्यता के ज़िस्म पर रोज नया आघात
कहीं परिवर्तन 
तो कहीं उन्माद के नाम पर
और हमारे यहां भ्रष्टाचार के विरूद्ध
शंखनाद के नाम पर
अराजकता के बीज बो कर तुम जा रहे हो
पूरी बेशर्मी के साथ हंस रहे हो 
मुस्करा रहे हो
पर,तुम शायद यह भूल गये
कि तुम भी सिर्फ घटना बन पाये हो
इतिहास नहीं
अब किसी को तुमसे कोई आस नहीं
तुम तो यह भी भूल गये
कि जब तुम आये थे
सारी रात जगे थे हम
हमने रात भर स्वागत गीत गाये थे
पर,जाते हुये शिकवा-शिकायत 
करने की हमारी रिवायत नहीं है
किसी अहसानफरामोश याद रखना हमारी आदत नहीं है
अतः चले जाओ बिना मुडे
बिना पलटे चुपचाप
क्योंकि हम सुन रहे हैं सुंदर -सलोने दो हजार बारह की पदचाप
अब हम दो हजार बारह के स्वागत गान गायेंगे
उम्मीद है हम एक -दूसरे को याद नहीं आयेंगे
----------अरविंद पथिक
9910416496

No comments: