बृहद भरत चरित्र महाकाव्य से कुछ प्रसंग
आपके दर्शनार्थ:-
मम विनती आप हैं समर्था | भ्रात! समझो धर्म का अर्था ||
है संशोधन तिहार हाथा | पुनिपुनि विनय करूँ रघु नाथा ||
हे सामर्थवान! आपसे मेरी विनती है, " भ्रात! धर्म का अर्थ समझिए, यह संशोधन आपके हाथ में है | हे रघुनाथ! मैं आपसे पुनः पुनः विनती करता हूँ |
तात सुह्रद बंधु पुरवासी | अवध मैं कैकेयी उदासी ||
जगरक्षक लोकरंजनकारी | पुनः विनती, करो स्वीकारी||
तात, सुह्रदय, बंधु, पुरवासी, अवध, मैं, कैकेयी आदि सब बहुत दुखी हैं| हे जगरक्षक! हे लोकरंजनकारी! आपसे मेरी पुनः विनती है, आप स्वीकार करें |
कित क्षात्र धर्म कित वनवासा | कित वल्कल कित राजलिवासा ||
महाप्रग्य! तुम्हें ये न सोहें | नृप सुत को राज वस्त्र मोहें ||
किधर क्षात्रधर्म, किधर वनवास, किधर वल्कल वस्त्र और किधर राजलिवास हैं | हे महाप्रग्य ! तुम्हें यह शोभा नहीं देता है | नृपपुत्र को तो राजसीवस्त्र ही शोभा देते हैं |
शास्त्रज्ञान औ, जन्म से, मैं हूँ बालक नाथ |
जब योग्य बड़े भ्रात हैं, राज्य मुझे न सुहात ||
हे नाथ! शास्त्रज्ञान और जन्म से मैं बालक हूँ | जब बड़े भ्रात योग्य हैं तब मुझे यह राज्य नहीं सुहाता है|
बुद्धिहीन गुणहीन हूँ, छोटा मेरा स्थान|
तुम बिन ममजीवन नहीं, राज्य दूरबहु मान|
हे राम! मैं बुद्धिहीन, गुणहीन और छोटा मेरा स्थान है| राज्य तो बहुत दूर रहा, तुम बिना मेरा जीवन ही नहीं है |
सह्रदय सरल मनोभिरमा | सत्त्व गुण संपन्न श्रीरामा ||
पित्राज्ञा में द्रढ़ता पायी | अयोध्या जाना नहीं सुहायी||
श्रीराम! आप सह्रदय, सरल, मनोभिराम और सत्त्वगुण संपन्न हैं| आपने पित्राज्ञा में द्रढ़ता पायी है | आपको अयोध्या जाना अच्छा नहीं लग रहा है|
राम की द्रढ़ता बिलोक, जननी हुईं अचेत|
टपटप आँसू बरसते, पाहन भीगा रेत||
राम की द्रढ़ता देखकर सब माताएं अचेत हो गयी| उनकी आँखों से टपटप आँसू बह रहे हैं जिससे पत्थर और रेत सभी भीग गए हैं|
रिषी संत बहु जन समुदायी| भरत प्रशंसा की हरषायी||
कहें राम से सब सविनीता| चलो वापिस सह लखन सीता ||
ऋषि, संत और बहुत सारा जनसमुदाय ने हर्षित होकर भरत की बहुत प्रशसा की | और सभी ने राम से विनती की कि हे राम ! लक्ष्मण और सीता के साथ आप वापिस अयोध्या चलें|
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प्रस्तुति:-
योगेश
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