Search This Blog

Monday, December 12, 2011

लालच लोभ नहीं तन माहीं




भरत चरित्र महाकाव्य से कुछ सदप्रसंग आपके दर्शन  हेतु--

गिरि वन     जंगल धरणी सारी | रघुकुलवंशी नृप अधिकारी ||
एक जु भरत धर्मात्मा राजा | भूपालक प्रिय सकल समाजा ||

यहाँ सारी धरनि पर पहाड़ और जंगल हैं | और इस भूमि पर रघुकुलवंश के राजा अधिकारी हैं | एक धर्मात्मा राजा भरत हैं जो भूमिपालक और सर्व समाज के प्रिय राजा हैं |

धर्मज्ञ विनयशील बलवाना | भरत में सदगुण विद्यमाना ||
देश  काल व तत्व के ज्ञाता | जग में धर्म प्रचार सुहाता ||

बलवान भरत धर्मज्ञ,  विनयशील और सद्गुणशील हैं | वे देश, काल और तत्व के ज्ञाता हैं | संसार में धर्म_प्रचार बहुत अच्छा लगता है | 

लालच लोभ नहीं तन माहीं | सह्रदय समर्पित जग ताहीं ||
भरत का   ही   हमको आदेशा | धर्म प्रचार हेतु वन देशा ||

भरत के तन में लालच और लोभ नहीं है | वे संसार में अति सह्रदय और समर्पित हैं | भरत का ही हमको आदेश है | इसलिए हम भी धर्म प्रचार हेतु इस वनप्रदेश में आये हैं |

प्रस्तुति --

योगेश


No comments: