श्री भगवानसिंह
हंसजी
आपकी सार्थक और सटीक टिप्पणी पढ़ी। मजा आ गया।
आप जैसे प्रबुद्ध मनीषियों की टिप्पणी से बड़ा रचनात्मक संबल मिलता है। आप देशी
बीमारी का विदेशी इलाज व्यंग्य आलेख के मर्म तक बहुत गहराई से पहुंचे है। आपको
धन्यवाद। आप के महाकाव्य में आपका छायावादी
मन पूरी सामर्थ्य के साथ अभिव्यक्त हुआ है। पढ़कर पाठक बरबस ही एक रेशमी कल्पना
लोक में पहुंच जाता है। इस अदभुत महा रचना को प्रणाम और शतशः वंदन।
पंडित सुरेश नीरव
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