आदरणीय पंडित सुरेश नीरवजी का देशी बीमारी का विदेशी इलाज पर आधारित हास्य-व्यंग एक कडुबा सच है या यों कहिए कि सत्य को छिपाना या सत्य को नकारना ही सत्य है या फिर यों कहिए सत्य पर झूँठ बोलना ही सत्य है या फिर ऐसे कहिए कि सत्य पर चुप्पी साध लीजिए. क्योंकि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. फिर काहे का भारत बंद और काहे की संसद बंद या संसद न चलने देना. पंडितजी ने कहा है कि देश के २२ करोड़ खुदरा व्यापारी ही देश में मँहगाई और भ्रष्टाचार का कारण हैं जो अपनी परचूनी की दुकनियाँ खोले बैठे हैं और उनके साथ में थोक व्यापारी विदेशी कम्पनियाँ हैं जिन्होंने इन खुदरा व्यापारियों को अपनी जूती पर विदेशी चमकदार पालिश दिखाकर चूना लगाया है. पंडितजी का आशय यह है कि ये भारत बंद या संसद न चलने देना सिर्फ ये खद्दरपोशी सफ़ेद टोपी से लेकर काली जूती तक खुदरा व्यापारी की तरह विचारी भोली-भाल जनता को विदेशी कंपनियों के मुखौटे में भरमा रहे हैं. यह मछली बाज़ार के आलाबा कुछ नहीं हैं . ये मंडी नहीं हैं ये सिर्फ अन्डूआ की डंडी हैं. पंडितजी के शब्दों में --मनमोहनसिंहजी बड़े आदमी हैं। उनका मानना है कि देश के 22 करोड़ खुदरा व्यापारियों ने ही इस देश को मछली बाजार बनाया है। देशी मंहगाई और भ्रष्टार का विदेशी इलाज हैं ये विदेशी किराना कंपनियां। ऐसे संज्ञानवर्धक आलेख के लिए पंडितजी को बधाई और मेरे नमन.
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