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Friday, December 2, 2011

फेवीकोल के डिब्बेसे भी बड़ा है देश


हास्य-व्यंग्य-
देशी बीमारी का विदेशी इलाज
पंडित सुरेश नीरव
आजकल हमारे देश में भारत बंद की फैशन बडे ज़ोरों पर है। ज़रा-सा मौका मिला नहीं कि तड़ से करवा दिया भारत बंद। गोया भारत कोई देश न हो फेवीकोल का डिब्बा हो। जब इस्तेमाल करना हो तब ही खोलो और फिर कर दो बंद। फेवीकोल का डिब्बा बंद होने के बाद इस्तेमाल नहीं हो सकता मगर देश बंद होने बाद भी इस्तेमाल होता रहता है। इसलिए फेवीकोल के डिब्बे से ज्यादा बढ़िया माल है-देश। ऐसा बढ़िया माल कि जिसमें जितनी काबलियत हो उसके मुताबिक रेट लगाकर वह इसे बेच सकता है। देश को बेचने की कोई एम.आर.पी नहीं होती। पहले ईस्टइंडिया कंपनी ने इसे अपनी काबलियत के मुताबिक बेचा अब ए.राजा और सुरेश कलमाड़ी ने अपनी योग्यता के अनुसार इसे दोहने का पुण्य कार्य किया। हमारे मनमोहनसिंहजी खुदरा कारोबार में यकीन नहीं करते। ए.राजा और सुरेश कलमाड़ीजैसे दोयम दर्जे के परचूनियों को ही यह खुदरा कारोबार शोभा देता है। मनमोहनसिंहजी बड़े आदमी हैं। उनका मानना है कि देश के 22 करोड़ खुदरा व्यापारियों ने ही इस देश को मछली बाजार बनाया है। इनके कारण ही देश में मंहगाई है,भ्रष्टाचार है।  इन शातिर खुदरा कारोबारियों ने हमेशा आर्थिक विकास में डंडी मारी है। धनिये में लीद,मिर्च में पिसी ईंट,कालीमिर्च में पपीते के बीज और दूध के नाम पर यूरिया और शेंपू  टिपानेवाले इन कारोबारियों ने ही देश में भ्रष्टाचार फैलाया है। नीबू चूसते आदमी को देखकर बिना जलबोर्ड की सेवाओं के सामनेवाले के मुंह में पानी आ जाए तो इसमे उस का क्या कसूर। अब इन खुदरा कारोबारियों को देखकर 10-20 ग्राम जी- स्पेक्ट्रम कोई शरीफ नेता करने को ललचा जाए तो इसमें उस बेचारे का क्या गुनाह। सारे भ्रष्टाचार की जड़ ये खुदरा कारोबारी है। जिन्होंने देश से ईमानदारी खुर्द-बुर्द कर दी। माल में मिलावट,क्वालिटी में गिरावट और कीमत में मनचाही उछल-कूद मचानेवालों ने ही आर्थिक सुधार में वाट लगाई है। मनमोहनजी को ये बात अब खूब समझ में आ गई है। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। स्सालों ने देश को बिग बॉस का घर बना रक्खा है। एक बेतरतीब मंडी। मंडी का विविधभारती कार्यक्रम बना डाला है देश को। कहीं चूना मंडी,कहीं लोहा मंडी,कहीं हींग की मंडी,कहीं गल्ला मंडी,कहीं राजा की मंडी। हिमाचल में पूरा शहर ही मंडी। कहीं मंडी में भी मंडी। और-तो-और दिल्ली में मंडी हाउस। देश एक और मंडी अनेक। ये सरासर नाइंसाफी है। 22 करोड़ खुदरा व्यापारियों की साजिश है देश को दीवालिया करने की। मैं किसी को नहीं छोड़ूंगा। सारे बदल डालूंगा। पूरे देश के बदल डालूंगा। इन सारे फ्यूज बल्बों को बदल डालूंगा। सरदारजी सनक गए हैं। वे भारत बंद से नहीं डरनेवाले। 6 दिन से संसद ठप्प पड़ी है। जूं नहीं रेंगी। तो फिर एक दिन के भारतबंद से ये क्या भुट्टा उखाड़ लेंगे।  भारतबंद करनेवाले इन सब का मैं हवा-पानी बंद कर दूंगा। गदर काट रक्खा है। बिका माल वापस नहीं होगा,उधार प्रेम की केंची है-जैसे फतवे जारी करके बहुत दिन अंधों में काने राजा बन लिए। बेचने को रद्दी माल और उस पर इतना बबाल। अब विदेशी कंपनियां बता देंगीं,इन्हें इनकी औकात। बाहर के माल की क्वालटी होती है। ये नोट भी छापते हैं तो इतने असली कि बैंकवाले भी पहचान नहीं पाते। ये है विदेशी टेकनीक। देशी तो शराब भी नहीं पीता हमारे देश का  कोई शरीफ आदमी। वो तो भला हो पेप्सी और कोक कंपनियों का जिनकी बदैलत बोतलबंद शुद्ध पानी पीने को मिल रहा है वरना प्यासा मर जाता यह देश। इंडिया के लिए जितना भला ये विदेशी कंपनियां सोचेंगी उतना कोई  देसी काहे को सोचेगा। आखिर हम ग्लोबल विलेज के दैर में रह रहे हैं। ज़रा सोचिए जब देशी ठर्रे की कीमत पर विदेशी स्कॉच मिलेगी तब देश का स्तर बढ़ नहीं जाएगा। कैसा मनोहारी सीन होगा जब प्रसन्नचित्त किसान मन चाही ब्रांड हलक से उतारने के बाद ही आत्महत्याएं करेंगे। तब जयजवान-जय किसान तथा भारत माता की जय की हैलो ट्यून विदेशी मोबाइल कंपनियां ग्राहक को मुफ्त उपलब्ध कराया करेंगी जिसके लिए आज कस्टमर को अपने खीसे से नकद 30 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। गांधीजी के चश्में और चरखे की कसम तब आम आदमी को खूब सस्ती चीजें मिलेंगी और नवयुवकों को खूब रोजगार मिलेगा। जो आज के ग्लोबल दौर में भी लोकल रह गए हैं वही इन कंपनियों के खिलाफ पैर पटक रहे हैं। वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि देशी मंहगाई और भ्रष्टार का विदेशी इलाज हैं ये विदेशी किराना कंपनियां।
आई-204,गोविंदपुरम,गाज़ियाबाद-201013
मोबाइल-09810243966

1 comment:

Shoonya Akankshi said...

"ज़रा सोचिए जब देशी ठर्रे की कीमत पर विदेशी स्कॉच मिलेगी तब देश का स्तर बढ़ नहीं जाएगा। कैसा मनोहारी सीन होगा जब प्रसन्नचित्त किसान मन चाही ब्रांड हलक से उतारने के बाद ही आत्महत्याएं करेंगे।"

बहुत धारदार व्यंग्य है.