परम श्रद्धेय पंडितजी आपके चरणों में नमन ही मेरी अन्तः अभिव्यक्ति है. मेरी अन्तः अभिव्यक्ति को मुखरित करने के लिए मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूँ. आपके दो शब्दों की उत्सुक चाह में अपना ही हंस कभी कभार भटकता-सा द्रष्टिगोचर होता है कि वे दो शब्द मेरे मनांचल को कब गुदगुदी देंगे. उसी उत्सुक चाह में विचारा-हंस. पालागन.
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