प्रकाश प्रलयजी
आपकी शब्दिकाएं
ग़ज़ब ढा रही हैं। आपने अभी हाल में ब्लॉग पर आई तमाम पोस्टों पर भी अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं।
यह देख कर आनंद आया। इससे लगता है कि ब्लॉग भी एक रचनात्मक बहस का सार्थक मंच बन
सकता है। और इसे बनना भी चाहिए। आपकी ये शब्दिका बहुत मन को भाई..हार्दिक बधाई।
शब्दिका --
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हमारी
राजनीति
भूकम्प से भी
बड़ी है -----
आज़ादी के बाद से
झटकों पर खड़ी है-----
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प्रकाश प्रलय कटनी –
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हमारी
राजनीति
भूकम्प से भी
बड़ी है -----
आज़ादी के बाद से
झटकों पर खड़ी है-----
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प्रकाश प्रलय कटनी –
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अरविंद पथिकजी,
बाजारवादी
मानसिकता के संवाहक बने आज के बुद्दिजीवियों की ललचाऊ मानसिकता पर आपने करारा
व्यंग्य किया है। और बता-जता दिया है कि जयचंदी नस्ल के कुटिल बुद्धिजीवी देश में
कितनी तबाही पूरी धौंस के साथ ला सकते हैं।
ऐसे ही लिखते रहें। जयहिंद..
अरे आने
तो दीजिये
खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश
हम वालमार्ट को बडी खामोशी से डकार जायेंगे
आप हमारी क्षमताओं को कम आंकते हैं
हमारे नाम से मनमोहन और अन्ना दोनों कांपते हैं
फटा तिरंगा लहराकर भी हम अपना रेट दस से लाख
कर सकते हैं
तो लोकपाल बनने के बाद
हमारे जाल में कवि सम्मेलनीय संयोजक ही नहीं
टाटा और बिडला भी फंस संकते हैं
----------अरविंद पथिक
खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश
हम वालमार्ट को बडी खामोशी से डकार जायेंगे
आप हमारी क्षमताओं को कम आंकते हैं
हमारे नाम से मनमोहन और अन्ना दोनों कांपते हैं
फटा तिरंगा लहराकर भी हम अपना रेट दस से लाख
कर सकते हैं
तो लोकपाल बनने के बाद
हमारे जाल में कवि सम्मेलनीय संयोजक ही नहीं
टाटा और बिडला भी फंस संकते हैं
----------अरविंद पथिक
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