कल लोकमंगल पर नीरवजी ने मुझे दुर्दांत भावुक कवि की उपाधि से नवाज़ा।शुक्रिया,ऐसी दहशतनाक प्रशंसा आप ही कर सकते हैं,प्रभो।चलो आज फिर एक पुराना मुक्तक सौंप रहा हूं क्योंकि नया कुछ आजकल लिखा नही जा रहा----
आज न रोको अश्रु इन्हे बह जाने दो
मन की सारी व्यथा इन्हे कह जाने दो
विश्वासों का दुर्ग ढह गया आज अचानक
रोको मत, जाने वाले को जाने दो
arvind61972@gmail.com
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